
शनि देव आरती
शनिवार को भगवान शनि देव की विशेष पूजा की जाती है।
शनि मंत्र
शनिवार व्रत महत्व
शनिवार का व्रत रखने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। यह शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से भी राहत दिलाता है। इस दिन व्रत करने से नौकरी और व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। इसके अलावा, यह सुख-समृद्धि और मान-सम्मान में वृद्धि करता है। शनिवार को व्रत रखने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और धन-यश की प्राप्ति होती है। साथ ही, यह रोगों से भी छुटकारा दिलाने में मदद करता है। ज्योतिष के अनुसार, शनिवार का व्रत कुंडली में पीड़ित शनि ग्रह को मजबूत बनाता है।
शनिवार व्रत कथा
एक समय की बात है, सभी नवग्रहों जैसे सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु के बीच यह बहस छिड़ गई कि इनमें सबसे बड़ा कौन है। सभी ग्रह आपस में झगड़ने लगे और जब कोई समाधान नहीं निकला, तो वे देवराज इंद्र के पास पहुंचे। इंद्रदेव थोड़े चिंतित हो गए और निर्णय करने में असमर्थता जताई, लेकिन उन्होंने सुझाव दिया कि इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो बहुत न्यायप्रिय हैं। वे ही इस विवाद का समाधान कर सकते हैं।
सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास गए और अपनी समस्या बताई, साथ ही निर्णय की मांग की। राजा विक्रमादित्य इस स्थिति को लेकर चिंतित थे, क्योंकि उन्हें पता था कि यदि उन्होंने किसी को छोटा बताया, तो वह नाराज हो जाएगा। तभी राजा को एक उपाय सूझा। उन्होंने स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से 9 सिंहासन बनवाए और उन्हें इस क्रम में सजाया।
फिर उन्होंने सभी से निवेदन किया कि कृपया अपने-अपने सिंहासन पर बैठ जाएं। जो अंतिम सिंहासन पर बैठेगा, वही सबसे छोटा माना जाएगा। इस क्रम में लौह सिंहासन सबसे अंत में था, इसलिए शनिदेव सबसे बाद में बैठे। इस कारण से वे सबसे छोटे कहलाए। शनिदेव को लगा कि राजा ने जानबूझकर ऐसा किया है, और वे गुस्से में राजा से बोले, ‘राजा! तुम मुझे नहीं जानते। सूर्य एक राशि में एक महीने, चंद्रमा सवा दो महीने दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बृहस्पति तेरह महीने, और बुध और शुक्र एक-एक महीने रहते हैं, लेकिन मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हूं। मैंने बड़े-बड़ों का विनाश किया है।’
जब श्री राम की साढ़े साती आई, तो उन्हें वनवास मिला, और रावण की साढ़े साती आई, तो उसकी लंका को वानरों की सेना से हार का सामना करना पड़ा। अब तुम सावधान रहना। ऐसा कहकर शनिदेव वहां से चले गए।अन्य देवता खुशी-खुशी वहां से चले गए। कुछ समय बाद राजा की साढ़े साती का समय आया।
तब शनिदेव घोड़ों के व्यापारी के रूप में वहां पहुंचे। उनके साथ कई शानदार घोड़े थे। राजा ने यह सुनकर अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने का आदेश दिया। उसने कई बेहतरीन घोड़े खरीदे और एक सर्वोत्तम घोड़ा राजा को सवारी के लिए दिया। जैसे ही राजा उस पर सवार हुआ, वह घोड़ा तेजी से जंगल की ओर दौड़ पड़ा और घने जंगल में पहुंचकर गायब हो गया।
अब राजा भूखा और प्यासा भटकता रहा, तब एक ग्वाले ने उसे पानी दिया। राजा ने खुशी से उसे अपनी अंगूठी भेंट की। अंगूठी देकर राजा नगर की ओर चल पड़ा और वहां उसने अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया। वहां एक सेठ की दुकान पर उसने पानी पिया और कुछ समय आराम किया। संयोगवश उस दिन सेठ की बिक्री बहुत अच्छी हुई। सेठ ने उसे खाना खिलाने के लिए खुशी-खुशी अपने घर ले गया। वहां उसने एक खूंटी पर एक हार लटका देखा, जिसे खूंटी निगल रही थी।
थोड़ी देर बाद पूरा हार गायब हो गया। तब सेठ ने देखा कि हार नहीं है। सेठ ने सोचा कि वीका ने उसे चुराया है, इसलिए उसने वीका को कोतवाल के पास पकड़वा दिया।
इसके बाद उस नगर के राजा ने भी वीका को चोर समझकर उसके हाथ-पैर कटवा दिए और उसे नगर के बाहर फेंकवा दिया। वहां से एक तेली गुजरा, जिसे वीका पर दया आई, और उसने उसे अपनी गाड़ी में बैठा लिया। वह अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा। उसी समय राजा की शनिदशा समाप्त हो गई। वर्षा ऋतु आने पर राजा मल्हार गाने लगा। राजा जिस नगर में था, वहां की राजकुमारी मनभावनी को उसका गाना इतना भाया कि उसने मन में ठान लिया कि वह उसी राग गाने वाले से विवाह करेगी। राजकुमारी ने अपनी दासी को राग गाने वाले को खोजने भेजा।
दासी ने कहा कि वह एक चौरंगिया (अपाहिज) है, लेकिन राजकुमारी ने उसकी बात नहीं मानी। अगले दिन से वह अनशन पर बैठ गई और कहने लगी कि वह केवल उसी से विवाह करेगी। बहुत समझाने पर भी जब राजकुमारी नहीं मानी, तो राजा ने उस तेली को बुलवाया और विवाह की तैयारियों का आदेश दिया। इसके बाद उसका विवाह राजकुमारी से हो गया।
फिर एक दिन राजा ने सोते हुए स्वप्न में शनिदेव को देखा, जिन्होंने कहा, ‘राजन, तुमने मुझे छोटा समझकर कितना दुख सहा है।’ राजा ने उनसे क्षमा मांगी और प्रार्थना की, ‘हे शनिदेव, जैसा दुख आपने मुझे दिया है, वैसा किसी और को न दें।’ शनिदेव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और कहा कि जो मेरी कथा और व्रत का पालन करेगा, उसे मेरी दशा में कोई दुख नहीं होगा। जो भी व्यक्ति रोज मेरा ध्यान करेगा और चींटियों को आटा देगा, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी। इसके बाद शनिदेव ने राजा को उनके हाथ-पैर वापस कर दिए।
प्रातः जब राजकुमारी की आंख खुली, तो उसने एक अद्भुत दृश्य देखा। वीका ने उसे बताया कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। सभी लोग बहुत खुश हुए, और सेठ ने जब यह सुना, तो वह राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा कि यह तो शनिदेव का क्रोध था, इसमें किसी का कोई दोष नहीं। फिर भी, सेठ ने निवेदन किया कि उसे शांति तभी मिलेगी जब राजा उसके घर भोजन के लिए आएंगे। सेठ ने अपने घर में राजा का स्वागत नाना प्रकार के व्यंजनों से किया। साथ ही, सबने देखा कि जो खूंटी हार निगल गई थी, वही अब उसे वापस उगल रही थी। सेठ ने राजा का धन्यवाद करते हुए उसे अनेक मोहरें भेंट कीं।
सेठ ने राजा से अपनी बेटी श्रीकंवरी के साथ विवाह करने की इच्छा जताई। राजा ने खुशी-खुशी इसे स्वीकार कर लिया। कुछ समय बाद, राजा अपनी दोनों रानियों, मनभावनी और श्रीकंवरी, के साथ उज्जैन नगरी की ओर रवाना हुए। वहां राजा के राज्यवासियों ने सीमा पर उनका भव्य स्वागत किया। पूरे नगर में दीपों की सजावट की गई। राजा ने घोषणा की कि उन्होंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था, जबकि वास्तव में वही सर्वोच्च हैं। तब से पूरे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित रूप से होने लगी। सभी प्रजा खुशी और आनंद के साथ जीवन व्यतीत करने लगी। जो भी शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं।
व्रत के दिन इस कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।
शनिवार व्रत का उद्यापन कैसे करें ?
शनिवार को उद्यापन करने के लिए आपने जो व्रत लिया है, जैसे 17, 27 या 37 आदि, उसे पूरा करने के बाद अगले शनिवार सुबह उठकर पानी में गंगाजल और काले तिल डालकर स्नान करें। स्नान करते समय ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः का जाप करें। इसके बाद शनि देव को नीले या काले वस्त्र अर्पित करें और शनि चालीसा का पाठ करें। शनि देव के मंदिर जाकर उन्हें तेल चढ़ाएं और गेंदे के फूल अर्पित करें। काली उड़द की दाल से बनी चीजों का भोग शनि देव को लगाएं। अंत में शनि देव की आरती करें और भोग को प्रसाद के रूप में बांटें।
शनिवार पूजा विधि
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शनिवार की पूजा कैसे करनी चाहिए?
- शनिवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। फिर शनि की प्रतिमा या यंत्र स्थापित करें और शनि मंत्रों का जाप करें। इस समय शनिदेव को पंचामृत से स्नान कराना बहुत शुभ माना जाता है।
- इसके बाद उन्हें काले वस्त्र, काले तिल और सरसों का तेल अर्पित करें, साथ ही सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
- फिर शनिदेव की चालीसा और कथा का पाठ करें। पूजा के दौरान शनिदेव को पूड़ी और काले उड़द दाल की खिचड़ी का भोग लगाएं।
- अंत में अनजाने में हुई गलतियों के लिए माफी मांगें और आरती करें।