
संतोषी मां आरती
शुक्रवार को संतोषी मां की विशेष पूजा की जाती है।
संतोषी मां मंत्र
संतोषी मां महामंत्र:
जय माँ संतोषिये देवी नमो नमः
श्री संतोषी देव्व्ये नमः ||
ॐ श्री गजोदेवोपुत्रिया नमः ||
ॐ सर्वनिवार्नाये देविभुता नमः ||
ॐ संतोषी महादेव्व्ये नमः ||
ॐ सर्वकाम फलप्रदाय नमः ||
ॐ ललिताये नमः ||
मंत्र से करें ध्यान
ॐ श्री संतोषी महामाया गजानंदम दायिनी
शुक्रवार प्रिये देवी नारायणी नमोस्तुते! ||
शुक्रवार व्रत महत्व
सनातन परंपरा में शुक्र ग्रह को विशेष महत्व दिया गया है। शुक्रवार का नाम भी शुक्र देवता के नाम पर रखा गया है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र ग्रह से जुड़ा कोई दोष है, तो उसे दूर करने और उसकी सकारात्मकता प्राप्त करने के लिए आपको शुक्रवार को 21 या 31 व्रत रखना चाहिए। इस दिन आपको शुक्र से संबंधित वस्तुएं जैसे चीनी, चावल और सफेद कपड़े का दान भी करना चाहिए।
शुक्रवार व्रत के लाभ
शुक्रवार व्रत के कई लाभ हैं जो भक्तों को जीवन में शांति, सफलता और समृद्धि की प्राप्ति में सहायता करते हैं।
- शुक्रवार का व्रत करने से संतोषी माता की कृपा प्राप्त होती है।
- इस व्रत से गरीबी और दरिद्रता का अंत होता है।
- शुक्रवार के व्रत से व्यापार में लाभ होता है।
- परीक्षाओं में सफलता मिलती है।
- न्यायालय में जीत हासिल होती है।
- घर में सुख और समृद्धि का वास होता है।
- अविवाहित लड़कियों को मनचाहा पति मिलता है।
- बच्चे न होने वाले दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- परिवार में प्रेम और एकता बढ़ती है।
- विवाहित महिलाओं को उनके वैवाहिक जीवन में आ रही सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
शुक्रवार व्रत कथा

एक गांव में एक वृद्धा रहती थी जिसके सात बेटे थे। उनमें से छह बेटे मेहनती थे, जबकि एक बेटा आलसी था। वृद्धा मां हमेशा अपने छह बेटों का बचा हुआ खाना उस आलसी बेटे को देती। एक दिन आलसी बेटा अपनी पत्नी से कहने लगा, “देखो, मेरी मां मुझसे कितना प्यार करती है।” पत्नी ने जवाब दिया, “क्यों नहीं, वह तो तुम्हारे लिए सबका बचा हुआ खाना लाती है।” उसने कहा, “जब तक मैं अपनी आंखों से नहीं देखूंगा, मुझे विश्वास नहीं होगा।” पत्नी हंसते हुए बोली, “जब तुम देखोगे, तब ही विश्वास करोगे?”
कुछ दिन बाद एक बड़ा त्योहार आया। घर में सात तरह के पकवान और चूरमा के लड्डू बनाए गए। वह पत्नी की बात की सच्चाई जानने के लिए सिरदर्द का बहाना बनाकर एक हल्का कपड़ा सिर पर ओढ़कर रसोई में जाकर सो गया और कपड़े के बीच से सब कुछ देखता रहा। उसके छह भाई भोजन के लिए आए। उसने देखा कि मां ने उनके लिए सुंदर आसन सजाए, सात प्रकार के व्यंजन परोसे और बार-बार आग्रह करके उन्हें भोजन कराया। वह सब देखता रहा। जब छहों भाई भोजन कर उठ गए, तब मां ने उनकी पांच थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया। जूठन साफ करके मां ने उसे बुलाया, “उठ बेटा! उठ! तेरे भाइयों ने भोजन कर लिया, तू भी उठकर खा ले।” उसने कहा, “मां! मुझे भूख नहीं है। मैं परदेस जा रहा हूं।”
माता ने कहा, ‘अगर कल जाना है तो आज ही निकल जाओ।’ उसने जवाब दिया, ‘हां, हां, जा रहा हूं’ और यह कहकर वह घर से बाहर चला गया। चलते-चलते उसे पत्नी की याद आई। वह गौशाला में कंडे बना रही थी। वहां पहुंचकर उसने कहा, ‘मेरे पास तो कुछ नहीं है। यह अंगूठी लो और मुझे अपनी कोई निशानी दे दो।’ पत्नी ने कहा, ‘मेरे पास तो सिर्फ यह गोबर भरा हाथ है।’ यह कहकर उसने उसकी पीठ पर गोबर से भरे हाथ से थपकी दे दी।
वह आगे बढ़ गया। चलते-चलते वह एक दूर देश में पहुंचा। वहां एक साहूकार की दुकान थी। उसने साहूकार से कहा, “सेठ जी, मुझे नौकरी पर रख लो।” साहूकार को एक नौकर की बहुत जरूरत थी।
साहूकार ने कहा, ‘काम के अनुसार ही तनख्वाह मिलेगी।’ उसने उत्तर दिया, “सेठजी, जैसा आप उचित समझें।” उसे साहूकार के यहाँ नौकरी मिल गई। वह वहाँ दिन-रात मेहनत करने लगा। कुछ ही दिनों में उसने दुकान का सारा काम संभाल लिया, जैसे लेन-देन, हिसाब-किताब और ग्राहकों को सामान बेचना। साहूकार के पास सात-आठ अन्य कर्मचारी थे, जो उसकी मेहनत को देखकर चकित रह गए। लेकिन उसने अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से सभी को पीछे छोड़ दिया। उसे उसके प्रयासों का फल मिला। सेठ ने भी उसकी मेहनत को देखा और तीन महीने के भीतर ही उसे मुनाफे में साझीदार बना दिया। मेहनत करते-करते बारह वर्षों में वह नगर का प्रसिद्ध सेठ बन गया और सेठ ने अपना सारा कारोबार उसे सौंपकर बाहर चला गया।
उसकी पत्नी पर क्या बीता, यह सुनिए। सास-ससुर ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया। घर के कामों में मदद करने के लिए उसे लकड़ी लेने जंगल भेजा जाने लगा। इस दौरान, घर में रोटियों के आटे से जो भूसी निकलती, उसकी रोटी बना दी जाती और फूटे नारियल की नरेली में पानी डाल दिया जाता। इस तरह दिन गुजरते रहे। एक दिन, जब वह लकड़ी लेने नहीं गई, तो रास्ते में उसे कई महिलाएं संतोषी माता का व्रत करते हुए दिखाई दीं। वह वहां रुककर पूछने लगी, “बहनों, तुम किस देवता का व्रत कर रही हो और इसके करने से क्या लाभ होता है? इस व्रत की विधि क्या है? अगर तुम मुझे अपने व्रत का विधान समझा दोगी, तो मैं तुम्हारी बहुत आभारी रहूंगी।” उनमें से एक महिला बोली, “सुनो, यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से दरिद्रता और निर्धनता का नाश होता है, लक्ष्मी का आगमन होता है। मन की चिंताएं दूर होती हैं और मन को खुशी और शांति मिलती है। निपूती को पुत्र की प्राप्ति होती है।
प्रीतम जब बाहर जाते हैं, तो जल्दी लौट आते हैं। कुंवारी कन्या को उसकी पसंद का वर मिलता है, और मुकदमा समाप्त हो जाता है। घर में कलह और क्लेश का अंत होता है, शांति का माहौल बनता है, धन की वर्षा होती है और संपत्ति का लाभ मिलता है। इसके अलावा, मन में जो भी इच्छाएं होती हैं, वे सभी संतोषी माता की कृपा से पूरी हो जाती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है।
कार्य सिद्ध होने के बाद ही उद्यापन करना चाहिए, बीच में नहीं। उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा और उसी अनुसार खीर और चने का साग बनाना चाहिए। आठ बच्चों को भोजन कराना आवश्यक है। जितने भी रिश्तेदार, जैसे देवर, जेठ, भाई-बंधु, कुटुंब के लड़के मिलें, उन्हें बुलाना चाहिए। अगर वे नहीं मिलते, तो पड़ोसियों के बच्चों को आमंत्रित करें। उन्हें भोजन कराकर, यथाशक्ति दक्षिणा दें और माता का नियम पूरा करें। ध्यान रखें कि उस दिन घर में कोई खटाई न खाए। यह सुनकर वह वहां से चली गई। रास्ते में उसने लकड़ी का बोझ बेच दिया और उन पैसों से गुड़-चना लेकर माता के व्रत की तैयारी के लिए आगे बढ़ी। रास्ते में संतोषी माता का ध्यान रखा।
माता को दया आई। एक शुक्रवार बीता, फिर दूसरे शुक्रवार को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा पहुंचा। यह देखकर जेठानी मुँह चिढ़ाने लगी, “इतने दिनों बाद इतना पैसा आया। इसमें क्या खास बात है?” लड़के ताने देने लगे, “काकी के पास अब पत्र आने लगे हैं, पैसे भी आने लगे हैं, अब तो काकी की इज्जत बढ़ेगी, अब तो काकी बुलाने पर भी नहीं बोलेगी।” बेचारी सरलता से बोली, “भैया, पत्र आए, पैसा आए तो यह हम सबके लिए अच्छा है।” ऐसा कहकर, उसकी आंखों में आंसू भर आए और वह संतोषी माता के मंदिर की ओर चल दी।
मातेश्वरी के चरणों में गिरकर वह रोने लगी, “मां, मैंने तुमसे पैसे नहीं मांगे। मुझे पैसों की कोई जरूरत नहीं है। मुझे तो अपने पति की याद और सेवा चाहिए।” यह सुनकर माता ने मुस्कुराते हुए कहा, “जा बेटी! तेरा पति जल्दी ही आएगा।” यह सुनकर वह खुशी से झूम उठी और घर जाकर काम करने लगी। संतोषी मां सोचने लगीं, ‘मैंने तो इस भोली बेटी से कह दिया कि उसका पति जल्द आएगा, लेकिन वह आएगा कहां से? उसे तो इसकी याद भी नहीं आती। मुझे ही उसे याद दिलाने जाना होगा।’ संतोषी माता ने उस बुजुर्ग महिला के बेटे को स्वप्न में समझाया, ‘पुत्र! तुम्हारी पत्नी बहुत दुख सह रही है।’ उसने कहा, ‘हां माता! मुझे भी यह पता है, लेकिन मैं क्या करूं, वहां जाने का कोई रास्ता नहीं है। परदेस की बात है, सारे लेन-देन का हिसाब है, कोई उपाय नजर नहीं आता। कृपया आप ही मुझे बताएं कि मैं वहां कैसे जाऊं।
मां ने कहा, “सुबह उठकर नहा-धोकर संतोषी माता का नाम लो, घी का दीपक जलाओ, फिर दण्डवत करके दुकान पर जाओ। देखना, तुम्हारा लेन-देन जल्दी ही पूरा हो जाएगा, जो माल जमा है, वह बिक जाएगा, और शाम तक तुम्हारे पास धन का ढेर लग जाएगा।” अगले दिन सुबह वह बहुत जल्दी उठ गया। उसने अपने दोस्तों और परिचितों को सपने में माता द्वारा कही गई बात बताई। सब उसकी बात सुनकर हंसने लगे और कहने लगे कि क्या कभी सपने की बात सच होती है? लेकिन एक बूढ़ा व्यक्ति जो बहुत समझदार था, बोला, “भाई, मेरी बात सुनो! देवता ने जो कहा है, उसे मानो। सच या झूठ की चिंता मत करो, तुम्हें क्या नुकसान है?” बूढ़े की सलाह मानकर, उसने नहा-धोकर संतोषी माता को प्रणाम किया।
फिर भी दीपक जलाकर दुकान पर बैठ गया। शाम तक उसके पास धन का बड़ा ढेर लग गया। वह हैरान रह गया। मन में संतोषी माता का नाम लेते हुए, खुश होकर घर जाने के लिए गहने, कपड़े और अन्य सामान खरीदने लगा। सभी काम निपटाकर वह अपने घर की ओर चल पड़ा। वहीं उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने गई थी। लौटते समय थक जाने के कारण वह संतोषी माता के मंदिर पर आराम करने बैठ गई। यह उसका रोज का विश्राम स्थल था। धूल उड़ती देख उसने माता से पूछा, “हे माता! यह धूल क्यों उड़ रही है?” माता ने कहा, “हे पुत्री, तुम्हारा पति आ रहा है। अब तुम ऐसा करो, लकड़ियों के तीन बोझ बना लो। एक नदी के किनारे रख दो, दूसरा मेरे मंदिर पर और तीसरा अपने सिर पर रख लो। तुम्हारे पति को लकड़ी का गड्डा देखकर आकर्षण होगा।”
यहां रुकेगा, नाश्ता-पानी बनाकर मां से मिलने जाएगा। तुम लकड़ी का बोझ उठाकर जाना और बीच चौक में गड्डा डालकर तीन बार जोर से कहना – लो सासूजी। लकड़ियों का गट्ठा लो, भूसी को रोटी दो, नारियल के खोपर में पानी दो! आज कौन मेहमान आया है? संतोषी मां की बात सुनकर वह खुशी-खुशी लकड़ियों के तीन बोझ लेकर आई। एक बोझ नदी के किनारे और दूसरा माता के मंदिर पर रखा। तभी मुसाफिर वहां पहुंचा। सूखी लकड़ी देखकर उसे लगा कि यहीं आराम कर ले और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव चला जाए। इस तरह भोजन करके विश्राम करते हुए वह अपने गांव लौट आया। उसी समय बहू सिर पर लकड़ी का गट्ठा लिए आई। उसने गट्ठा आंगन में डालकर जोर से तीन बार कहा, “लो सासूजी, लकड़ी का गट्ठा लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खोपर में पानी दो। आज कौन मेहमान आया है?” यह सुनकर सास ने अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने के लिए कहा, “बहू, तुम ऐसा क्यों…?”
तेरा मालिक आ गया है। बैठ, मीठा भात खा और कपड़े गहने पहन। पत्नी की आवाज सुनकर उसका पति बाहर आया और उसकी अंगूठी देखकर चौंक गया। उसने मां से पूछा, ‘मां, यह कौन है?’ मां ने कहा, ‘बेटा, यह तेरी पत्नी है। जब से तू गया है, तब से यह गांव में जानवरों की तरह भटक रही है। कुछ काम नहीं करती, बस चार बार आकर खाना खा लेती है। अब मुझे देखकर भूसी की रोटी और नारियल के पानी की मांग करती है।’ वह बोला, ‘मां, मैंने इसे भी देखा है और तुम्हें भी। मुझे दूसरे घर की चाबी दो, मैं वहीं रहूंगा।’ मां ने कहा, ‘ठीक है बेटा, जैसी तेरी इच्छा।’ और चाबी का गुच्छा उसके सामने रख दिया। उसने दूसरे घर को खोला और वहां सारा सामान व्यवस्थित किया। एक ही दिन में वहां राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब वह सुख का आनंद लेने लगी। अगले शुक्रवार उसने पति से कहा, “मुझे संतोषी माता का उद्यापन करना है।” पति बोला, “बहुत अच्छा, खुशी से कर लो।”
वह उद्यापन की तैयारी में जुट गई। जेठ के लड़कों को भोजन के लिए बुलाने गई, उन्होंने सहमति दी। लेकिन पीछे से जेठानी ने अपने बच्चों को समझाया, “सुनो! भोजन के समय सब लोग खटाई मांगना, ताकि उसका उद्यापन पूरा न हो सके।” लड़के भोजन करने आए और खीर का भरपूर आनंद लिया। लेकिन अचानक याद आते ही बोले, “हमें कुछ खटाई चाहिए, खीर हमें पसंद नहीं है, इसे देखकर मन उचट जाता है।” लड़के उठ खड़े हुए और बोले, ‘पैसे लाओ।’ भोली बहू को कुछ पता नहीं था, उसने उन्हें पैसे दे दिए। लड़के बाजार जाकर उन पैसों से इमली खरीदकर खाने लगे। यह देखकर बहू पर उसकी सास ने गुस्सा किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले गए। अब सब कुछ सामने आ जाएगा। जब वह जेल की रोटी खाएगा!” बहू यह सहन नहीं कर पाई। वह संतोषी माता के मंदिर गई और बोली, “माता! तुमने यह क्या किया, हंसाकर क्यों रुलाने लगीं?” माता ने कहा, “पुत्री! तुमने मेरा व्रत तोड़ा है।”
इतनी जल्दी सब कुछ भुला दिया। उसने कहा, “मैंने माता को नहीं भुलाया है, न ही कोई गलती की है। मुझे तो लड़कों ने भुला दिया। मुझे माफ कर दो, मां।” मां ने कहा, “क्या ऐसी भूल भी होती है?” उसने कहा, “अब कोई भूल नहीं होगी। बताओ, मेरे पति कैसे आएंगे?” मां ने उत्तर दिया, “बेटी, जा, तुम्हारा पति तुम्हें रास्ते में ही मिलेगा।” जब वह मंदिर से बाहर आई, तो रास्ते में उसे अपना पति आता हुआ दिखाई दिया। उसने पूछा, “कहाँ गए थे?” पति ने कहा, “इतना धन कमाया है, उसका कर राजा ने मांगा था। मैं उसे भरने गया था।” वह खुशी से बोली, “अच्छा हुआ, अब चलो घर।” फिर अगला शुक्रवार आया। उसने कहा, “मुझे माता का उद्यापन करना है।” पति ने कहा, “ठीक है, करो।” फिर वह जेठ के लड़कों को भोजन के लिए बुलाने गई। जेठानी ने लड़कों को सिखा दिया कि पहले खटाई मांगना।
लड़के खाने के लिए बैठे, लेकिन खाने से पहले ही कहने लगे, ‘हमें खीर-पूरी पसंद नहीं है। इससे जी खराब हो जाता है। कुछ खटाई दो।’ इस पर उसने कहा, ‘खटाई नहीं मिलेगी, अगर खाना है तो खाओ।’ जब वे उठकर चले गए, तो उसने ब्राह्मणों के लड़कों को बुलाकर भोजन कराया। दक्षिणा के रूप में उन्हें एक-एक फल दिया। इससे संतोषी माता खुश हो गईं। माता की कृपा से नौ महीने बाद उसे चंद्रमा के समान एक सुंदर बेटा मिला। वह बेटे के साथ रोज संतोषी माता के मंदिर जाने लगी। मां ने सोचा कि यह रोज आती है, आज क्यों न मैं इसके घर चलूं और इसका हालचाल देखूं। यह सोचकर माता ने एक डरावना रूप धारण किया। गुड़ और चने से सना हुआ चेहरा, ऊपर से मुंड के जैसे होंठ, और उन पर मक्खियां भिनभिना रही थीं।
दहलीज पर कदम रखते ही उसकी सास चिल्लाई, “देखो! कोई चुड़ैल आ रही है, इसे भगाओ वरना सबको खा जाएगी।” बहू रोशनदान से देख रही थी और खुश हो गई, “आज मेरी माता मेरे घर आई हैं।” यह कहकर उसने दूध पीते बच्चे को गोद से उतार दिया। इस पर उसकी सास ने गुस्से में कहा, “अरे, इसे देखकर तुम इतनी उतावली क्यों हो गई हो कि बच्चे को पटक दिया?” तभी मां के प्रभाव से चारों ओर लड़के ही लड़के नजर आने लगे। बहू बोली, “मां जी, मैं जिनका व्रत करती हूं, वे संतोषी माता हैं।” इतना कहकर उसने झट से घर के सारे दरवाजे खोल दिए। सभी ने माता के चरणों को पकड़ लिया और विनम्रता से कहने लगे, “हे माता, हम मूर्ख हैं और अज्ञानी हैं। हमें आपके व्रत की विधि नहीं पता, हमने आपके व्रत को भंग कर बड़ा अपराध किया है। कृपया हमारे अपराधों को क्षमा करें।” इस प्रकार बार-बार कहने पर संतोषी माता प्रसन्न हो गईं। फिर उसकी सास बोली, हे संतोषी माता। आपने बहू को जैसा फल दिया, वैसा सबको देना।
जो यह कथा सुने या पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो।
शुक्रवार पूजा विधि

शुक्रवार की पूजा कैसे करनी चाहिए?
शुक्रवार व्रत का पालन करने के लिए कुछ विशेष नियम और विधि का पालन किया जाता है।
- शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है।
- इस दिन सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद लाल रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं। फिर मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिसमें उनकी प्रतिमा या तस्वीर पर लाल रंग का तिलक किया जाता है।
- पूजा में माता को लाल फूल अर्पित किए जाते हैं।
- इसके बाद मां लक्ष्मी को धूप और दीप दिखाए जाते हैं।
- उन्हें लाल बिंदी, लाल चुनरी, सिंदूर और चूड़ियां अर्पित की जाती हैं।
- मां लक्ष्मी को चावल की खीर का भोग भी लगाया जाता है।
- चावल की पोटली लेकर मां लक्ष्मी के मंत्र “ओम् श्रीं श्रीये नम:” का 108 बार जाप किया जाता है।
- अंत में शुक्रवार व्रत कथा का पाठ करके मां लक्ष्मी की आरती की जाती है।
शुक्रवार व्रत के विशेष नियम और उपाय
शुक्रवार व्रत के पालन के दौरान कुछ विशेष नियमों का ध्यान रखना आवश्यक होता है:
- अगर आप मां लक्ष्मी को खुश करना चाहते हैं, तो पूजा के दौरान उन्हें कमल का फूल अर्पित करें। मां लक्ष्मी को यह फूल बहुत पसंद है। इस उपाय से आपकी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।
- यदि आप अपनी कुंडली में शुक्र ग्रह को मजबूत करना चाहते हैं, तो शुक्रवार को पूजा के समय मां लक्ष्मी को चावल की खीर जरूर अर्पित करें। इससे आपके जीवन में सुख की वृद्धि होती है।
- अगर आप आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो शुक्रवार को विधिपूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करें और उन्हें कौड़ी अर्पित करें। इस समय मां लक्ष्मी से सुख, समृद्धि और धन की वृद्धि की प्रार्थना करें।
- मां लक्ष्मी को एकाक्षी नारियल बहुत प्रिय है। इसलिए पूजा के समय उन्हें एकाक्षी नारियल जरूर भेंट करें। इस उपाय से मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा साधक पर बरसती है। श्रीफल अर्पित करते समय ध्यान रखें।