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बृहस्पति देव आरती
गुरुवार को भगवान बृहस्पति की विशेष पूजा की जाती है।
बृहस्पति मंत्र
बृहस्पति के प्रमुख मंत्र
बृहस्पति के कई मंत्र हैं, जिन्हें उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए जपा जाता है। नीचे कुछ प्रमुख मंत्र दिए गए हैं:
1. बृहस्पति बीज मंत्र
“ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः”
यह मंत्र बृहस्पति की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली है। इसे नियमित रूप से जपने से बृहस्पति के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और शुभता बढ़ती है।
2. बृहस्पति गायत्री मंत्र
“ॐ अंगीरसाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्”
यह मंत्र ज्ञान, विवेक, और सकारात्मकता के लिए जपा जाता है। विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए यह मंत्र अत्यंत लाभकारी है।
3. गुरु मंत्र
“देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचन सन्निभम।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।”
इस मंत्र का जाप बृहस्पति के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने के लिए किया जाता है। यह मंत्र गुरु ग्रह की कृपा पाने के लिए अत्यंत प्रभावशाली है।
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गुरुवार व्रत महत्व
गुरुवार व्रत का मुख्य उद्देश्य जीवन में आने वाली कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त करना और बृहस्पति देव की कृपा से जीवन में शुभता का आह्वान करना है। यह व्रत विशेष रूप से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसके साथ ही, यह व्रत स्वास्थ्य, धन, और सफलता की प्राप्ति के लिए भी अत्यधिक लाभकारी माना जाता है।
गुरुवार व्रत के लाभ
गुरुवार व्रत के कई लाभ हैं जो भक्तों को जीवन में सफलता, शांति और समृद्धि की प्राप्ति में सहायता करते हैं।
- सुख-शांति और समृद्धि: गुरुवार व्रत के पालन से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। बृहस्पति देव की कृपा से परिवार में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
- धन-धान्य की प्राप्ति: इस व्रत के करने से धन और धान्य की प्राप्ति होती है। बृहस्पति देव की कृपा से धन संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: गुरुवार व्रत के पालन से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह व्रत आत्मविश्वास और मानसिक शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।
- वैवाहिक जीवन में सुख: यह व्रत विशेष रूप से उन महिलाओं द्वारा किया जाता है जो अपने वैवाहिक जीवन में सुख और शांति की कामना करती हैं। इसके पालन से वैवाहिक जीवन में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
- संतान सुख: गुरुवार व्रत के पालन से संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत उन दंपतियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं।
गुरुवार व्रत कथा
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यह एक प्राचीन कथा है। भारत में एक महान राजा था, जो अपने पराक्रम और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध था। वह हमेशा गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। हर दिन वह मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करता था, लेकिन उसकी रानी को यह पसंद नहीं था। वह न तो पूजा करती थी और न ही दान में रुचि रखती थी। एक दिन राजा शिकार पर जंगल गया, और रानी अपने दासियों के साथ महल में अकेली रह गई। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु के रूप में राजा के महल में भिक्षा मांगने आए। जब उन्होंने भिक्षा मांगी, तो रानी ने मना कर दिया। रानी ने कहा, “हे साधु महाराज, मैं दान-पुण्य से थक गई हूं। मेरे पति के लिए यह सब काफी है। कृपया ऐसा करें कि सारा धन समाप्त हो जाए, ताकि मैं शांति से रह सकूं।” साधु ने उत्तर दिया, “देवी, आप तो अजीब हैं। धन और संतान से कौन दुखी होता है? सभी लोग इसकी कामना करते हैं।”
पापी भी अपने बच्चों और धन की चाह रखते हैं। यदि आपके पास बहुत सारा धन है, तो भूखे लोगों को भोजन कराएं, प्याऊ बनवाएं, ब्राह्मणों को दान दें, कुआं, तालाब, बाग-बगिचे आदि का निर्माण कराएं। मंदिर, पाठशाला और धर्मशाला बनवाकर दान करें। गरीब कन्याओं का विवाह कराएं। इसके साथ ही यज्ञ और अन्य शुभ कार्य करें, अपने धन को अच्छे कामों में लगाएं। ऐसा करने से आपका नाम परलोक में सम्मानित होगा और स्वर्ग की प्राप्ति होगी। लेकिन रानी पर इस उपदेश का कोई असर नहीं हुआ। उसने कहा- महाराज, मुझे ऐसे धन की जरूरत नहीं है जिसे मैं दूसरों को दान दूं, जो संभालने में ही मेरा सारा समय बर्बाद कर दे। कृपया ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए ताकि मैं आराम से रह सकूं।
साधु ने कहा, अगर तुम्हारी यही इच्छा है, तो तुम्हें मेरी बातों का पालन करना होगा। बृहस्पतिवार को अपने घर को गोबर से लीप दो और अपने बालों को पीली मिट्टी से धो लो। राजा से कहो कि वह भी बृहस्पतिवार को हजामत बनवाए, मांस और मदिरा का सेवन करे, और कपड़े धोबी के पास धुलने के लिए दे दे। ऐसा करने पर, सात बृहस्पतिवार में तुम्हारा सारा धन समाप्त हो जाएगा। यह कहकर साधु महाराज वहां से गायब हो गए। इसके बाद रानी ने साधु की बातों का पालन किया। तीन बृहस्पतिवार के भीतर ही उनका सारा धन-सम्पत्ति समाप्त हो गया और राजा-रानी भोजन के लिए तरसने लगे।
एक दिन राजा ने रानी से कहा कि तुम यहीं रहो, मैं एक दूसरे देश में काम करने चला जाता हूँ क्योंकि यहाँ सभी लोग मुझे जानते हैं, इसलिए मैं कोई काम नहीं कर सकता। राजा ने कहा कि यह देश चोरी और परदेश में भीख मांगने के समान है, फिर वह परदेश चला गया। वहां उसने जंगल में जाकर लकड़ी काटी और उसे शहर में बेचकर अपना जीवन यापन करने लगा।
किसी दिन भोजन मिल जाता और किसी दिन केवल जल पीकर ही रहना पड़ता। एक बार जब रानी और उसकी दासियाँ सात दिन तक बिना भोजन के रहीं, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, “हे दासी, पास के नगर में मेरी बहन रहती है, जो बहुत धनवान है। तुम उसके पास जाओ और 5 सेर बेझर मांगकर ले आओ, ताकि कुछ समय के लिए हमारी गुजर-बसर हो सके।” दासी रानी की बहन के पास गई। उस दिन बृहस्पतिवार था और रानी की बहन बृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की बहन को रानी का संदेश दिया, लेकिन उसने कोई उत्तर नहीं दिया। जब दासी को कोई जवाब नहीं मिला, तो वह बहुत दुखी और क्रोधित हो गई। वह वापस आकर रानी को सारी बातें बता दी। यह सुनकर रानी ने कहा, “हे दासी, इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। जब बुरे दिन आते हैं, तो कोई सहारा नहीं मिलता। अच्छे और बुरे का पता विपत्ति में ही चलता है। जो ईश्वर की इच्छा होगी, वही होगा। यह सब हमारे भाग्य का खेल है।”
रानी ने यह सब कहकर अपने भाग्य को कोसा। वहीं, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी। लेकिन मैंने उससे बात नहीं की, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी। कथा सुनने के बाद और पूजा समाप्त करके वह अपनी बहन के घर गई और बोली, हे बहन। मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी आई थी, लेकिन जब तक कथा चलती है, तब तक न उठते हैं और न बोलते हैं, इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। बताओ, दासी क्यों गई थी?
रानी ने कहा, बहन। हमारे घर में अनाज नहीं था। यह कहते हुए रानी की आंखों में आंसू आ गए। उसने अपनी बहन को बताया कि उसने दासियों के साथ 7 दिन तक भूखा रहने का अनुभव भी साझा किया। इसलिए मैंने दासी को तुम्हारे पास 5 सेर बेझर लाने के लिए भेजा था। रानी की बहन ने कहा, बहन, देखो, बृहस्पति देव सभी की इच्छाएं पूरी करते हैं। शायद तुम्हारे घर में अनाज हो। पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन बहन के कहने पर उसने दासी को अंदर भेजा। जब दासी घर के अंदर गई, तो उसे एक घड़ा बेझर से भरा हुआ मिला। यह देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने बाहर आकर रानी को बताया। दासी ने रानी से कहा, हे रानी, जब हमें भोजन नहीं मिलता, तो हम व्रत करते हैं, तो क्यों न हम इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ लें, हम भी व्रत करेंगे। दासी की बात सुनकर रानी ने अपनी बहन से बृहस्पति व्रत के बारे में पूछा। उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल, गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान की पूजा केले के वृक्ष की जड़ में करें, दीपक जलाएं और कथा सुनें। उस दिन एक ही समय भोजन करें, जिसमें पीले खाद्य पदार्थ हों।
गुरु भगवान की कृपा से अन्न, पुत्र और धन का आशीर्वाद मिलता है, और सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। व्रत और पूजा की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर लौट गई। रानी और दासी ने तय किया कि वे बृहस्पति देव का पूजन अवश्य करेंगे। सात दिन बाद जब बृहस्पतिवार आया, तो उन्होंने व्रत रखा। घुड़साल में जाकर चना और गुड़ इकट्ठा किया और उसकी दाल से केले की जड़ और विष्णु भगवान का पूजन किया। लेकिन पीला भोजन कैसे मिलेगा, यह सोचकर दोनों बहुत दुखी हो गईं। फिर भी, उन्होंने व्रत किया, जिससे बृहस्पति देव प्रसन्न हुए। एक साधारण व्यक्ति के रूप में वे दो थालों में पीला भोजन लेकर आए और दासी से कहा, “हे दासी, यह भोजन तुम्हारे और तुम्हारी रानी के लिए है, इसे तुम दोनों ग्रहण करो।”
दासी को भोजन मिलते ही वह बहुत खुश हो गई। उसने रानी से कहा, “चलो रानी जी, आप भी भोजन कर लीजिए।” लेकिन रानी को भोजन के बारे में कुछ नहीं पता था, इसलिए उसने कहा, “तू ही खा ले, क्योंकि तू बेवजह मेरी हंसी उड़ाती है।” दासी ने उत्तर दिया, “एक व्यक्ति ने भोजन दिया है।” रानी ने कहा, “वह व्यक्ति तो सिर्फ तेरे लिए ही भोजन लाया है, तू ही खा ले।” दासी ने कहा, “नहीं, वह व्यक्ति हमारे लिए दो थालों में सुंदर पीला भोजन लेकर आया है, इसलिए हम दोनों साथ में भोजन करेंगे।” यह सुनकर रानी बहुत खुश हुई और दोनों ने गुरु भगवान को नमस्कार करके भोजन किया।
उसके बाद से रानी हर बृहस्पतिवार को गुरु भगवान का व्रत और पूजा करने लगी। बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास धन आ गया। लेकिन रानी फिर से आलस्य करने लगी। तब दासी ने कहा, “देखो रानी, तुम पहले भी इसी तरह आलसी थीं, जिससे तुम्हें धन संभालने में कठिनाई होती थी और सब धन नष्ट हो गया। अब जब गुरु भगवान की कृपा से धन मिला है, तो फिर से आलस्य कर रही हो। हमने बहुत संघर्ष के बाद यह धन पाया है, इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए। अब तुम भूखे लोगों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, कुआं, तालाब, बावड़ी और बाग-बगीचे आदि का निर्माण कराओ। मंदिर, पाठशाला और धर्मशाला बनवाकर दान करो। निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह भी कराओ।”
अपने धन को शुभ कार्यों में लगाकर यज्ञ आदि कर्म करना न भूलें। इससे आपके परिवार का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पितृ भी प्रसन्न होंगे। दासी की सलाह मानकर रानी ने शुभ कार्य करना शुरू किया और उसका यश फैलने लगा। एक दिन रानी और दासी ने यह चर्चा की कि राजा किस हाल में होंगे, उनकी कोई खबर नहीं है। उन्होंने बृहस्पति भगवान से प्रार्थना की कि राजा जहां भी हों, जल्दी लौट आएं। उसी रात बृहस्पति देव ने राजा को स्वप्न में कहा कि हे राजा, उठो, तुम्हारी रानी तुम्हें याद कर रही है, अपने देश लौट आओ। राजा सुबह उठकर लकड़ी काटने के लिए जंगल की ओर चल पड़ा।
जंगल में चलते-चलते राजा सोचने लगा कि रानी की गलती के कारण उसे कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। राजमहल छोड़कर जंगल में आना पड़ा, लकड़ी काटकर शहर में बेचना पड़ा और अपनी स्थिति को याद करके वह दुखी हो गया। तभी राजा के पास बृहस्पति देव साधु के रूप में प्रकट हुए और बोले, हे लकड़हारे, तुम इस सुनसान जंगल में किस चिंता में हो? मुझे बताओ। यह सुनकर राजा की आंखों में आंसू आ गए। साधु को प्रणाम करके राजा ने अपनी पूरी कहानी सुनाई। महात्मा दयालु होते हैं। उन्होंने राजा से कहा, हे राजा, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव के प्रति अपराध किया था, जिसके कारण तुम्हारी यह स्थिति हुई। अब चिंता मत करो, भगवान तुम्हें पहले से अधिक धन देंगे। देखो, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पतिवार का व्रत शुरू कर दिया है। अब तुम भी बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल, गुड़ और मुनक्का से भगवान विष्णु की पूजा करो।
एक दिन एक ही समय पर भोजन करना और उसमें पीले खाद्य पदार्थों का सेवन करना आवश्यक है। भगवान आपकी सभी इच्छाओं को पूरा करेंगे। साधु की बात सुनकर राजा ने कहा, हे प्रभु। लकड़ी बेचने से इतना धन नहीं मिलता कि भोजन के बाद कुछ बच सके। मैंने रात में अपनी रानी को चिंतित देखा है। मेरे पास कोई साधन नहीं है जिससे मैं उसका हाल जान सकूं। फिर मैं कौन सी कहानी सुनाऊं, यह भी मुझे नहीं पता। साधु ने कहा, हे राजा। अपने मन में बृहस्पति भगवान की पूजा का संकल्प करो। वे स्वयं तुम्हारे लिए कोई रास्ता बनाएंगे। बृहस्पतिवार के दिन तुम रोज की तरह लकड़ियां लेकर शहर जाओ। तुम्हें पहले से दोगुना धन मिलेगा, जिससे तुम अच्छे से भोजन कर सकोगे और बृहस्पति देव की पूजा का सामान भी खरीद सकोगे। राजा ने ऐसा ही किया और उसे अपनी इच्छित फल की प्राप्ति हुई। इस प्रकार जो भी यह कथा पढ़ता या सुनता है, उसका भी कल्याण होता है।
गुरुवार पूजा विधि
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गुरुवार की पूजा कैसे करनी चाहिए?
गुरुवार व्रत का पालन करने के लिए कुछ विशेष नियम और विधि का पालन किया जाता है।
- व्रत का संकल्प: व्रत के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद बृहस्पति देव या भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
- पूजा की तैयारी: व्रत के दिन पीले वस्त्र पहनें और पूजा के लिए पीले फूल, पीला चंदन, और पीला प्रसाद तैयार करें। पूजा स्थल को स्वच्छ और पवित्र रखें।
- व्रत की पूजा: बृहस्पति देव या भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के समक्ष घी का दीपक जलाएं और धूप-दीप से आरती करें। पीले फूलों से भगवान की पूजा करें और पीले रंग के प्रसाद का भोग लगाएं। भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और बृहस्पति देव की स्तुति करें।
- व्रत का पालन: व्रत के दिन भोजन में नमक का प्रयोग न करें और केवल फलों का सेवन करें। दिन भर निराहार रहें और मन को शुद्ध और शांत रखें।
- व्रत का समापन: शाम को सूर्यास्त के बाद पूजा करें और भगवान को प्रसाद अर्पित करें। व्रत का समापन रात के समय या अगले दिन सुबह भगवान की आरती करने के बाद करें।
गुरुवार व्रत के विशेष नियम
गुरुवार व्रत के पालन के दौरान कुछ विशेष नियमों का ध्यान रखना आवश्यक होता है:
- नमक का सेवन न करें: व्रत के दिन भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर सेंधा नमक का प्रयोग किया जा सकता है।
- पीले वस्त्र पहनें: व्रत के दिन पीले वस्त्र पहनने का विशेष महत्व होता है। पीला रंग बृहस्पति देव का प्रिय रंग माना जाता है।
- गाय को भोजन कराएं: गुरुवार के दिन गाय को चारा खिलाना और उसके लिए जल की व्यवस्था करना विशेष फलदायी माना जाता है। इससे बृहस्पति देव की कृपा प्राप्त होती है।
- सात्विक आचरण: व्रत के दिन सात्विक आचरण का पालन करें। किसी भी प्रकार के मांस, मदिरा, और तामसिक आहार का सेवन न करें। मन को शांत और सकारात्मक विचारों से भरें।
- विवाहिता महिलाएं रखें व्रत: गुरुवार व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह व्रत उनके वैवाहिक जीवन को सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करने में सहायक होता है।