पैसों की दौड़ में उलझे लोगों का जीवन कैसा होता है? जानिए देवी निधि सरस्वत जी की दृष्टि

एक वृद्ध व्यक्ति बीमार हो गए और उन्हें अत्यधिक पीड़ा होने लगी। जैसे-जैसे मृत्यु का समय करीब आया, उनके पुत्रों ने उन्हें भगवान का नाम जपने की सलाह दी। वे जोर-जोर से बोलते रहे, “श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, नारायण,” लेकिन वृद्ध व्यक्ति के मुख से भगवान का नाम नहीं निकल पा रहा था। इस स्थिति को देखकर उनके पुत्रों को संदेह हुआ कि शायद उनके पिता भगवान का नाम नहीं ले पा रहे हैं क्योंकि उन्होंने जीवन में कभी भगवान का भजन नहीं किया। वे सोचने लगे कि कहीं उनके पिता किसी खजाने के बारे में तो इशारा नहीं कर रहे हैं। एक पुत्र ने सोचा कि पिता ने जीवन में भगवान का नाम नहीं लिया, इसीलिए मृत्यु के समय भगवान का नाम नहीं ले पा रहे हैं। उन्होंने डॉक्टर को बुलाया और उसे पैसे देने का वादा किया, ताकि वह ऐसी दवा दे सके जिससे उनके पिता बोल सकें। डॉक्टर ने दवा दी, और वृद्ध व्यक्ति थोड़े बहुत शब्द निकालने लगे, लेकिन अंततः उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। यह घटना यह सिखाती है कि जीवनभर अगर माया और सांसारिक सुखों में ही खोए रहेंगे, तो अंतिम समय में भगवान का भजन करने का अवसर नहीं मिलेगा। इसलिए जीवन की शुरुआत से ही भगवान का भजन करना चाहिए।

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