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मृत्यु के समय ध्यान कहां हो: मोक्ष या जन्म-मृत्यु का चक्र? | श्रीअनिरुद्धाचार्य जी
यह विचारधारा कि मरते समय व्यक्ति का मन जिस भी वस्तु में लगा होता है, उसकी अगली जीवन यात्रा उसी दिशा में होती है, हिंदू धर्म और आध्यात्मिकता में गहराई से जड़ी हुई है। यह सिद्धांत बताता है कि मृत्यु के समय व्यक्ति का चित्त जिस वस्तु या व्यक्ति के प्रति आकर्षित होता है, वही उसके अगले जन्म का निर्धारण करता है। इसलिए, मृत्यु के समय मन को सही दिशा में लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
मृत्यु और चित्त की स्थिति
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, मृत्यु के समय व्यक्ति का चित्त यदि संसारिक चीज़ों में उलझा रहता है, तो उसकी आत्मा उसी प्रकार के जीवन चक्र में फंसी रहती है। जैसे कि:
- कुत्ते में मन लगा है तो कुत्ता बनेगा: यदि मृत्यु के समय किसी व्यक्ति का चित्त पालतू जानवर या कुत्ते में लगा हुआ है, तो वह व्यक्ति अगले जन्म में कुत्ता बन सकता है।
- पैसे में मन लगा है तो सांप बनेगा: यदि व्यक्ति का मन धन-संपत्ति में लगा हुआ है, तो वह अगले जन्म में सांप बन सकता है, क्योंकि सांप को पारंपरिक रूप से धन का रक्षक माना गया है।
- पत्नी में मन लगा है तो स्त्री बनेगा: यदि मृत्यु के समय व्यक्ति का चित्त अपनी पत्नी या स्त्री में लगा हुआ है, तो वह अगले जन्म में स्त्री बन सकता है।
- पुरुष में मन लगा है तो पुरुष बनेगा: इसी प्रकार, यदि व्यक्ति का मन किसी पुरुष में लगा हुआ है, तो वह पुरुष के रूप में पुनर्जन्म ले सकता है।
भगवान में मन लगाने का महत्व
अध्यात्मिकता में ऐसा माना जाता है कि यदि मरते समय व्यक्ति का चित्त भगवान में लग जाता है, तो उसकी आत्मा को सद्गति प्राप्त होती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में मृत्यु के समय भगवत नाम, गीता के श्लोक, और भगवान के प्रति ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाती है। मरते समय भगवान के चिंतन से व्यक्ति के जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने की संभावना होती है।
बुढ़ापे में सजगता की आवश्यकता
आजकल के समय में, बुढ़ापे में लोग बहुत सी सांसारिक उलझनों में फंसे रहते हैं। यह उलझनें उन्हें भगवत चिंतन से दूर रखती हैं, जिससे उनके अगले जीवन में दुर्गति हो सकती है। इसलिए, बुढ़ापे में लोगों को ज्यादा ध्यान और भक्ति में समय व्यतीत करना चाहिए, ताकि मृत्यु के समय उनका चित्त सही दिशा में लगा रहे।
मृत्यु का सही समय
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु निकट होती है, तो उसके आस-पास के लोगों को उसे एकांत में रखना चाहिए, जहां केवल भगवान का नाम लिया जा रहा हो। रोने-धोने और शोरगुल से मरने वाले का चित्त विचलित हो सकता है, जिससे उसकी आत्मा की शांति में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
कर्मकांड और रोने-धोने का प्रभाव
आजकल के समय में, मृत्यु के समय परिवार के लोग अक्सर रोते हैं और शोक मनाते हैं, जिससे मरने वाले का ध्यान उन पर जा सकता है। इससे उसकी आत्मा के लिए सद्गति प्राप्त करना कठिन हो सकता है। इसलिए, मृत्यु के समय रोने-धोने के बजाय कीर्तन और भगवद्गीता के श्लोकों का पाठ करना चाहिए, ताकि मरने वाले का चित्त भगवान में लगा रहे और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सके।