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मन की हार-जीत: संतों के अद्भुत स्वभाव की प्रेरक घटना | भैया जी बल्लभगढ़ वाले
भैया जी बल्लभगढ़ वाले आपको एक प्रेरक घटना सुना रहे हैं जो संतों की महानता और उनकी अनोखी शिक्षा देने की विधि को उजागर करती है। यह घटना उस समय की है जब आधुनिक सुविधाएँ नहीं थीं और लोग कुओं से पानी भरते थे।
एक दिन, एक साधु महाराज कुएं के किनारे लेटे हुए थे, और वहीं पर एक वैश्य परिवार की महिला पानी भरने आई। उसने साधु से विनम्रता से कहा, “बाबा, क्या आप मेरी माटी के बर्तन को चकवा देंगे?” साधु महाराज ने जवाब दिया, “मैं तो मरा हुआ हूँ, कैसे कर सकता हूँ?” महिला ने दोबारा आग्रह किया, लेकिन साधु ने फिर वही जवाब दिया। महिला को गुस्सा आया और वह माटी का बर्तन खुद ही चकवा कर घर लौट आई।
उस दिन के बाद, उसी महिला के घर साधु महाराज भिक्षा मांगने के लिए पहुंचे। महिला ने उन्हें पहचानते ही कहा, “तुम तो मरे हुए हो, फिर भिक्षा क्यों मांग रहे हो?” इस पर साधु मुस्कुराए और बिना कुछ कहे लौट आए। महिला के पति ने साधु को फिर से ऊपर जाने को कहा, और साधु महाराज ने पुनः भिक्षा मांगी। महिला ने नाराज होकर उन्हें दुत्कार दिया।
महिला के पति ने यह देखकर कहा, “यह साधु सचमुच मरे हुए हैं, क्योंकि ये अपने मन को मार चुके हैं। मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।” उन्होंने यह समझाया कि सच्चा संत वही होता है, जो किसी भी स्थिति में क्रोध नहीं करता और हमेशा दूसरों की भलाई के लिए तत्पर रहता है। यह घटना हमें सिखाती है कि संतों की बातों में गहरा अर्थ छिपा होता है, जिसे समझने के लिए हमें अपनी सोच को खुला रखना चाहिए।
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