शिवलिंग की पूजा का महत्त्व: सही धातु से बने शिवलिंग की महिमा | आचार्य श्री कौशिक जी महाराज

शिवलिंग का पूजन हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है, और इसके विभिन्न रूपों और धातुओं से संबंधित कई रहस्यमयी बातें हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस धातु का शिवलिंग हो, उसी धातु की जलहरी (पीठ) होनी चाहिए। लेकिन, कुछ अपवाद भी होते हैं, जैसे कि पाषाण के बने नर्मदेश्वर शिवलिंग की जलहरी चांदी की होती है। कहा जाता है कि चांदी की जलहरी से गिरने वाला जल पितृलोक तक हमारे पूर्वजों को संतुष्ट करता है।

शिवलिंग की विभिन्न धातुओं के संबंध में कुछ नियम भी बताए गए हैं। उदाहरण के लिए, यदि शिवलिंग पारद का है, तो नीचे का हिस्सा भी पारद का होना चाहिए। यदि काष्ठ (लकड़ी) का शिवलिंग है, तो नीचे का हिस्सा भी काष्ठ का होना चाहिए। इसी तरह, पीतल के शिवलिंग के नीचे का हिस्सा भी पीतल का होना चाहिए।

आश्रमों और भक्तों द्वारा लाखों घरों में शिवलिंग पहुंचाए गए हैं, और लोगों को यह सलाह दी जाती है कि वे थोड़ा पैसा बचाकर शिवलिंग की जलहरी को तैयार करें। चांदी की बढ़ती कीमतों के बावजूद, इसे तैयार करना शुभ माना जाता है।

शिवलिंग की पूजा के लिए महत्वपूर्ण नियम भी दिए गए हैं। पूजा में बैठने से पहले मंत्रों का जप करना चाहिए, ताकि मन शुद्ध हो सके और पूजा में संपूर्ण रूप से मन लग सके। जप से मन के विकार समाप्त हो जाते हैं और ईश्वर की आराधना में ध्यान केंद्रित होता है। यह भी कहा गया है कि बिना भगवान के भजन के जीवन का कल्याण संभव नहीं है।

एक अच्छे गुरु का चयन भी महत्वपूर्ण होता है। गुरु का चरित्र और सदाचार होना चाहिए। गुरु दीक्षा से पहले शिष्य को विशेष प्रकार की तैयारियां करनी चाहिए, जैसे कि घड़े के पानी से स्नान करना, एक दिन पहले अन्न छोड़ना, और पंचगव्य ग्रहण करना।

गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक अच्छे गुरु का शिष्य सभी संतों का आदर करता है, और समाज में उनके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है।

शिवलिंग की पूजा, गुरु दीक्षा, और जप के माध्यम से जीवन में शुद्धि और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। यह आस्था और भक्ति का प्रतीक है, जो हमें अध्यात्मिक और सामाजिक रूप से समृद्ध बनाता है।

इस प्रकार, शिवलिंग और गुरु के प्रति समर्पण का यह मार्ग जीवन को आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है और जीवन में शांति और संतोष का अनुभव कराता है।