
क्या नारी के कदम उठाने से संसार बदल जाएगा? | अनिरुद्धाचार्य जी
इस संसार में सबसे शक्तिशाली कौन है? भगवान, समय, या स्त्री? इस विषय पर सोचें तो जवाब साफ हो जाता है। हालांकि भगवान और समय असीम शक्तिशाली माने जाते हैं, लेकिन स्त्री की शक्ति को नकारा नहीं जा सकता। उसका बल केवल शारीरिक ताकत में ही नहीं है, बल्कि उसकी मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक शक्ति अद्वितीय है।
पौराणिक कथाओं में स्त्री की शक्ति
भारतीय पौराणिक कथाओं में स्त्री की शक्ति के अनेक उदाहरण मिलते हैं। रावण जैसा महाबली राक्षस सीता के कारण ही नष्ट हुआ। रावण की अत्यधिक शक्ति, उसका साम्राज्य और उसकी सेना भी उसे बचा नहीं सकी क्योंकि उसने एक स्त्री का अपमान किया था।
महाभारत में, द्रौपदी का अपमान हुआ तो भीम ने प्रतिज्ञा की कि वह 100 कौरवों को मारकर ही दम लेगा। द्रौपदी की इस शक्ति और सम्मान के लिए लड़ी गई महाभारत की लड़ाई ने पूरे समाज को बदलकर रख दिया। यह उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि जब भी स्त्री का अपमान हुआ है, समाज में बड़े बदलाव आए हैं।
समाज में स्त्री की शक्ति
आज के समय में भी, स्त्री हर क्षेत्र में अपनी शक्ति दिखा रही है। वह परिवार को चलाने से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियों और राष्ट्रों को भी सफलतापूर्वक संभाल रही है। स्त्री की शक्ति केवल उसकी शारीरिक क्षमता में नहीं, बल्कि उसकी सहनशीलता, धैर्य, और जीवन को संभालने की क्षमता में है।
नारी शक्ति का महत्व
हिंदू धर्म में नारी को शक्ति का स्वरूप माना गया है। मां दुर्गा और काली जैसे देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जो सृष्टि की रचना और विनाश दोनों की प्रतीक हैं। यह दिखाता है कि स्त्री की शक्ति में सृजन और विनाश दोनों का संतुलन होता है। मां दुर्गा के आठ हाथ यही संकेत करते हैं कि एक स्त्री एक साथ कई जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक संभाल सकती है।
आधुनिक जीवन में नारी का बल
आज की स्त्रियां शिक्षा, व्यापार, और राजनीति में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। वे केवल परिवार को नहीं, बल्कि पूरे समाज को बेहतर बना रही हैं। उनकी ताकत उनके आत्म-सम्मान, स्वाभिमान, और समाज को सही दिशा में ले जाने की क्षमता में छिपी होती है।
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