Search Results for “कार्तिक” – Dhaarmi https://dhaarmi.com Mon, 18 Nov 2024 11:34:03 +0000 en-GB hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.2 https://dhaarmi.com/wp-content/uploads/2024/09/cropped-cropped-dhaarmi-new-icn-32x32.png Search Results for “कार्तिक” – Dhaarmi https://dhaarmi.com 32 32 Somvar Shiv Chalisa in Hindi and English lyrics https://dhaarmi.com/aartis-bhajans-hi/somvar-shiv-chalisa-in-hindi-and-english-lyrics https://dhaarmi.com/aartis-bhajans-hi/somvar-shiv-chalisa-in-hindi-and-english-lyrics#respond Fri, 15 Nov 2024 13:34:07 +0000 https://dhaarmi.com/?p=6101 सोमवार शिव चालीसा

।। दोहा ।।
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान … ।।

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Shiv Bhagwan

।। चौपाई ।।
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला … ।। 1

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के … ।। 2

अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए … ।। 3

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे … ।। 4

मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी … ।।

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी … ।।

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे … ।।

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ … ।। 8

देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा … ।।

किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी … ।।

तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ … ।।

आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा … ।। 12

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई … ।।

किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी … ।।

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं … ।।

वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई … ।। 16

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला … ।।

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई … ।।

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा … ।।

सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी … ।। 20

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई … ।।

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर … ।।

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी … ।।

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै … ।। 24

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो … ।।

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो … ।।

मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई … ।।

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी … ।। 28

धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं … ।।

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी … ।।

शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन … ।।

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं … ।। 32

नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय … ।।

जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई … ।।

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी … ।।

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई … ।। 36

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे … ।।

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा … ।।

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे … ।।

जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे … ।। 40

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी … ।।

।। दोहा ।।
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश … ।।

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण … ।।

Somvar Shiv Chalisa

Dohā
Jai Ganesh Girija Suvan,
Mangal Mool Sujan.
Kahat Ayodhya Das Tum,
Dehu Abhay Vardan.

Chaupāi
Jai Girija Pati Deen Dayala,
Sada Karat Santan Pratipala.

Bhaal Chandrama Sohat Neeke,
Kanan Kundal Nagfani Ke.

Ang Gaur Shir Gang Bahaye,
Mundmal Tan Kshar Lagaye.

Vastra Khaal Baghamber Sohe,
Chhavi Ko Dekhi Naag Man Mohe. (4)

Maina Maatu Ki Have Dulaari,
Baam Ang Sohat Chhavi Nyari.

Kar Trishool Sohat Chhavi Bhaari,
Karat Sada Shatrun Kshaykaari.

Nandi Ganesh Sohai Tah Kaise,
Sagar Madhya Kamal Hain Jaise.

Kartik Shyam Aur Ganrau,
Ya Chhavi Ko Kahi Jaat Na Kau. (8)

Devan Jabahin Jaay Pukara,
Tab Hi Dukh Prabhu Aap Nivara.

Kiya Upadrav Taarak Bhaari,
Devan Sab Mili Tumhin Juhari.

Turat Shadanan Aap Pathayau,
Lavni-Mesh Mah Maar Girayau.

Aap Jalandhar Asur Sanhara,
Suyash Tumhar Vidit Sansara. (12)

Tripurasur San Yudh Machai,
Sabahin Kripa Kar Leen Bachai.

Kiya Tapahin Bhagirath Bhaari,
Purab Pratijna Tasu Puraari.

Daanin Mah Tum Sam Kou Naahin,
Sevak Stuti Karat Sadaahin.

Ved Naam Mahima Tav Gaai,
Akath Anaadi Bhed Nahin Paai. (16)

Prakati Udadhi Manthan Mein Jwala,
Jarat Surasur Bhaye Vihala.

Keenhi Daya Tahan Kari Sahaai,
Neelkanth Tab Naam Kahai.

Poojan Ramchandra Jab Keenha,
Jeet Ke Lank Vibhishan Deenha.

Sahas Kamal Mein Ho Rahe Dhaari,
Keenh Pariksha Tabahin Puraari. (20)

Ek Kamal Prabhu Rakheu Joi,
Kamal Nayan Poojan Chahun Soi.

Kathin Bhakti Dekhi Prabhu Shankar,
Bhaye Prasanna Diye Ichchhit Var.

Jai Jai Jai Anant Avinaashi,
Karat Kripa Sab Ke Ghatvasi.

Dusht Sakal Nit Mohi Satavai,
Bhramat Rahun Mohi Chain Na Aavai. (24)

Trahi Trahi Main Nath Pukaro,
Yehi Avasar Mohi Aan Ubaaro.

Lai Trishool Shatrun Ko Maro,
Sankat Se Mohi Aan Ubaaro.

Maat-Pita Bhrata Sab Hoi,
Sankat Mein Poochat Nahin Koi.

Swami Ek Hai Aas Tumhari,
Aay Harahu Mam Sankat Bhaari. (28)

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Dhan Nirdhan Ko Det Sada Hi,
Jo Koi Jaanche So Phal Paahi.

Astuti Kahi Vidhi Karen Tumhari,
Kshamahu Nath Ab Chook Hamari.

Shankar Ho Sankat Ke Naashan,
Mangal Kaaran Vighn Vinashan.

Yogi Yati Muni Dhyan Lagaavai,
Sharad Narad Sheesh Navaavai. (32)

Namo Namo Jai Namah Shivay,
Sur Brahmadik Paar Na Paay.

Jo Yah Paath Kare Man Laayi,
Ta Par Hot Hai Shambhu Sahaayi.

Riniya Jo Koi Ho Adhikari,
Paath Kare So Paavan Haari.

Putraheen Kar Ichchha Joi,
Nishchay Shiv Prasad Tehi Hoi. (36)

Pandit Trayodashi Ko Laave,
Dhyan Poorvak Hom Karave.

Trayodashi Vrat Kare Hamesha,
Take Tan Nahin Rahai Kalesha.

Dhoop Deep Naivedya Chadhave,
Shankar Sammukh Paath Sunave.

Janm Janm Ke Paap Nasaave,
Ant Dham Shivpur Mein Paave. (40)

Kahain Ayodhya Das Aas Tumhari,
Jaani Sakal Dukh Harahu Hamari.

Dohā
Nitt Nem Kar Pratah Hi,
Paath Karun Chaalisa.
Tum Meri Manokamna,
Poorn Karo Jagdeesh.

Magsar Chhath Hemant Ritu,
Sanvat Chausath Jaan.
Astuti Chaalisa Shivahi,
Poorn Keen Kalyaan.

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व्रत और त्यौहार: Vrat and Festivals https://dhaarmi.com/vrat-and-festivals-vrat-katha-puja-aarti Fri, 15 Nov 2024 03:12:18 +0000 https://dhaarmi.com/?page_id=6032 Back:

व्रत और त्यौहार: Vrat and Festivals

कार्तिक पूर्णिमा: Kartik Purnima व्रत कथा, पूजा विधि, आरती

दिन के अनुसार पूजा: Day wise Pujas

Monday : सोमवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती

Tuesday: मंगलवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती

Wednesday: बुधवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती

Thursday: गुरुवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती

Friday: शुक्रवार कथा, पूजा विधि, आरती

Saturday: शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती

Sunday: रविवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती

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Kartik Purnima: कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा, पूजा विधि, आरती https://dhaarmi.com/kartik-purnima-vrat-katha-puja-vidhi-aarti Thu, 14 Nov 2024 17:40:58 +0000 https://dhaarmi.com/?page_id=5989
Kartik Purnima : Kya karen aur kya na karen

कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा

एक असुर था जिसका नाम तारकासुर था। उसके तीन बेटे थे – तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युत्माली। तारकासुर एक बहुत शक्तिशाली असुर था। वह पृथ्वी और स्वर्ग में कहर ढाता था, इसलिए देवी-देवताओं ने भगवान शिव से उसके आतंक से मुक्ति के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव  ने उनकी प्रार्थना सुनी और तारकासुर को मार डाला। देवी-देवता इससे बहुत प्रसन्न हुए।

इसकी खबर सुनकर उसके तीनों बेटे दुखी हुए और भगवान ब्रह्मा के लिए कठोर तप करने लगे। महान ब्रह्मा उनके तप से प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि वे क्या इच्छित करना चाहते हैं। तीनों ने ब्रह्मा जी से यह वर मांगा कि वे सभी हमेशा के लिए जीवित रहें। । ब्रह्माजी ने अमरता के अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा। 

इसके बाद, तीनों ने इस पर काफी समय तक विचार किया और फिर ब्रह्माजी से कहा – “आप तीन नगर बनवाएं और हम सभी तीन एक साथ किसी भी धरती और आसमान में बैठ सकते हैं।”

यदि, हजार वर्षों बाद, किस्मत से हम तीनों मिलें तो हमारे नगर मिलकर एक हो जाएँ।,हमारी मृत्यु तभी हो, जब कोई देवता इन तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखे। यह सभी को असम्भव लग रहा था, लेकिन उन्होंने यह वरदान प्राप्त कर लिया। ब्रह्माजी के निर्देशानुसार, मयदानव ने उनके लिए इन तीन नगरों की स्थापना की।

तारक के लिए एक सुनहरा नगर, कमला के लिए एक चांदी का नगर और विद्युत्माली के लिए एक लोहे का नगर। उनके संयुक्त प्रयास से तीनों ने तीनों लोकों का कब्ज़ा कर लिया।

इंद्र तीनों असुरों से आतंकित थे और भगवान शिव से मदद की याचना की।भगवान शिव ने इंद्र की बात सुनकर दानवों का नाश करने के लिए एक अद्भुत रथ तैयार किया। इस रथ की हर एक वस्तु देवताओं से बनाई गई थी। चंद्रमा और सूर्य के पहिए थे, जबकि इंद्र, वरुण, यम और कुबेर ने रथ के चार घोड़े बनाए। हिमालय से धनुष और शेषनाग से प्रत्यंचा तैयार की गई।

भगवान शिव स्वयं बाण बने और बाण की नोंक अग्निदेव ने बनाई। भगवान शिव इस दिव्य रथ पर सवार हुए। देवताओं से निर्मित इस रथ के साथ तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान एक ऐसा क्षण आया जब तीनों रथ एक ही रेखा में आ गए। जैसे ही यह हुआ, भगवान शिव ने अपने बाण छोड़े और तीनों का नाश कर दिया। इस वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी के नाम से जाना जाने लगा।`

सत्यनारायण भगवान की आरती यहाँ पर पढ़ें

लक्ष्मी माता की आरती यहाँ पर पढ़ें

शिव जी आरती यहाँ पर पढ़ें: ॐ जय जगदीश हरे

कार्तिक पूर्णिमा पूजा की विधि

temple at home 1

कार्तिक पूर्णिमा की पूजा कैसे करनी चाहिए?

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान शिव की भी पूजा करने का भी विधान है, उन्होंने तारकासुर राक्षस का वध किया ।

इस दिन सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लें और किसी पवित्र नदी में स्नान करें।

यदि यह संभव न हो, तो घर में नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान करें।

चंद्रोदय के समय शिव, संभूति, संतति, प्रीति, अनसूया और क्षमता इन 6 कृतिकाओं की विधि से पूजा करें।

इस दिन बैल, गाय, हाथी, घोड़ा, रथ या घी का दान करना बहुत शुभ माना जाता है।

रात में जागरण का भी खास महत्व है।

 कार्तिक पूर्णिमा पर जरूरतमंदों को भोजन कराना चाहिए और इस दिन हवन भी करना चाहिए।

यमुना जी पर कार्तिक स्नान के बाद राधा-कृष्ण का पूजन और दीपदान करने की परंपरा भी है।

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कार्तिक पूर्णिमा तुलसी पूजा की विधि

कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी की पूजा करने से पहले सबसे पहले तुलसी के गमले को अच्छे से साफ कर लें। फिर उसमें गेरू या हल्दी का लेप लगाएं। इसके बाद तुलसी माता को श्रृंगार की सामग्री जैसे चुनरी, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी आदि अर्पित करें।

फिर घी का दीपक जलाकर तुलसी माता की आरती करें। इस दिन तुलसी माता की कम से कम 11 बार परिक्रमा करना न भूलें। साथ ही तुलसी जी को हलवा और पूरी का भोग अर्पित करें। पूजा के बाद प्रसाद सभी में बांट दें।

कार्तिक पूर्णिमा आरती

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कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का भी महत्व है, क्योंकि उन्होंने तारकासुर नामक राक्षस का नाश किया था।

सत्यनारायण भगवान की आरती यहाँ पर पढ़ें

लक्ष्मी माता की आरती यहाँ पर पढ़ें

शिव जी आरती यहाँ पर पढ़ें: ॐ जय जगदीश हरे

कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

तो आइए जानते हैं, कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या न करें। ध्यान रखें, कार्तिक पूर्णिमा पर कुछ चीजें नहीं करनी चाहिए। इस दिन चांदी का बर्तन या दूध दान न करें, कमरे में अंधेरा न रखें, और तामसिक भोजन से परहेज करें। सफाई का भी खास ध्यान रखें, माँ लक्ष्मी का वास स्वच्छता में माना गया है।

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वरद चतुर्थी इस साल 5 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी। वरद चतुर्थी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है और इसे भगवान गणेश को समर्पित किया गया है। ‘वरद’ का अर्थ होता है ‘वरदान देने वाला,’ और इस दिन भगवान गणेश का पूजन जीवन में सुख, समृद्धि और मनोवांछित फल देने के लिए किया जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में कई लाभ प्राप्त होते हैं और संकटों का निवारण होता है।

वरद चतुर्थी का महत्व

इस दिन व्रत करने से भगवान गणेश की कृपा से जीवन के सभी कार्य सफल होते हैं। माना जाता है कि गणेश जी को प्रसन्न करने से बाधाएं दूर होती हैं और व्यक्ति की इच्छाएं पूरी होती हैं। इस दिन विशेषकर उन लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है जो मानसिक और शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं। इस दिन का व्रत सौभाग्य, स्वास्थ्य, और सफलता प्रदान करता है। इसके अलावा, इसका पालन करने से भगवान गणेश हर व्यक्ति के जीवन से विघ्नों का नाश करते हैं और ज्ञान, धैर्य और साहस का वरदान देते हैं।

कहा जाता है कि वरद चतुर्थी का व्रत देवी पार्वती और भगवान शिव द्वारा भी किया गया था, जब भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को वही लाभ प्राप्त होते हैं, जो देवी पार्वती ने गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए पाया था।

पूजा विधि

  1. स्नान और शुद्धि: प्रातःकाल स्नान करके साफ वस्त्र पहनें। गणेशजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  2. मंत्र जाप: ओम गण गणपतये नमः मंत्र का जाप करें और ध्यान करें।
  3. दूर्वा अर्पण: गणेशजी को दूर्वा घास अर्पित करें।
  4. सिंदूर और हल्दी: गणेश जी को सिंदूर और हल्दी लगाएं, यह उनकी विशेष प्रिय वस्तुएं मानी जाती हैं।
  5. मोदक का भोग: गणेशजी को मोदक या लड्डू का भोग लगाएं।
  6. आरती और दीपदान: पूजा के अंत में आरती करें और दीप जलाएं। फिर, गणेश चालीसा या उनके स्तोत्र का पाठ करें।

व्रत की विधि

वरद चतुर्थी का व्रत करने वाले भक्त उपवास रखें और दिन भर फलाहार ग्रहण करें। शाम के समय गणेश पूजन के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। व्रत करने वालों को इस दिन क्रोध और अहंकार से बचना चाहिए। व्रत के दौरान गणेश जी की कथाएं सुनना या पढ़ना विशेष लाभकारी माना जाता है।

वरद चतुर्थी के लाभ

  • संकटों का निवारण: गणेश जी को विघ्न हर्ता कहा जाता है, इस दिन उनकी पूजा से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
  • शुभ फल: यह दिन विशेष रूप से नई शुरुआत या कार्यारंभ के लिए उत्तम माना जाता है।
  • सफलता का वरदान: माना जाता है कि वरद चतुर्थी पर गणेश जी से वरदान पाने के लिए, की गई पूजा और व्रत, व्यक्ति को सफलता की ओर ले जाते हैं।
  • धार्मिक और मानसिक शांति: इस व्रत के दौरान मंत्र जाप और ध्यान से मानसिक शांति प्राप्त होती है।

वरद चतुर्थी पर क्या करें और क्या न करें

  1. क्या करें:
    • परिवार के साथ गणेशजी की आराधना करें।
    • दान करें, विशेषकर भोजन का दान।
    • धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें और अन्य लोगों को भी धर्म के महत्व को बताएं।
  2. क्या न करें:
    • इस दिन अहंकार और क्रोध से बचें।
    • किसी भी प्रकार का नकारात्मक विचार न रखें और दूसरों का अपमान न करें।
    • अनावश्यक खर्चों से बचें और जितना संभव हो आत्म-संयम रखें।

विशेष मुहूर्त

  • चतुर्थी तिथि का प्रारंभ: 5 नवंबर
  • पूजन का उत्तम समय: चतुर्थी की शाम को गणेशजी की आराधना और व्रत का संकल्प लेना अत्यंत शुभ माना जाता है।

देश के विभिन्न हिस्सों में वरद चतुर्थी को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, जहाँ इसे ‘वर सिद्धि विनायक व्रत’ भी कहा जाता है। महाराष्ट्र में इस दिन को खास मानते हुए सभी मंदिरों में गणेश पूजन का आयोजन होता है।

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नवंबर 2024 के प्रमुख त्यौहार और व्रत

1. गोवर्धन पूजा और अन्नकूट (1 नवंबर)

गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है, जिसे अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गांववासियों की रक्षा की थी। इस उपलक्ष्य में श्रीकृष्ण को विविध प्रकार के पकवान अर्पित किए जाते हैं, जिन्हें अन्नकूट कहा जाता है। भक्त इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाकर कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

2. भाई दूज (3 नवंबर)

भाई दूज एक पर्व है जो भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के ललाट पर तिलक करती हैं और उनकी दीर्घायु एवं समृद्धि की कामना करती हैं। भाई दूज का संबंध यमराज और उनकी बहन यमुना के पौराणिक कथा से है, जिसमें यमुना ने अपने भाई की सुरक्षा और लंबी आयु के लिए प्रार्थना की थी।

3. छठ पूजा (8 – 11 नवंबर)

छठ पूजा बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। यह चार दिन तक चलने वाला त्यौहार सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का पर्व है, जिसमें भक्त अपने परिवार की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए व्रत रखते हैं। इस पर्व में अस्त और उगते सूर्य को अर्घ्य देना महत्वपूर्ण माना जाता है।

4. कार्तिक पूर्णिमा (15 नवंबर)

कार्तिक पूर्णिमा को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। यह कार्तिक मास की पूर्णिमा का दिन होता है और इसे देव दीपावली के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और भगवान विष्णु तथा भगवान शिव की विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस अवसर पर तुलसी विवाह का आयोजन भी होता है, जो भगवान विष्णु और तुलसी माता के विवाह का प्रतीक है।

शुभ तिथियां और व्रत

एकादशी व्रत

  • प्रभोधिनी एकादशी (12 नवंबर): इसे हरि उत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के चातुर्मास के शयनकाल की समाप्ति होती है और वे जागृत होते हैं। यह दिन विवाह और अन्य शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
  • उत्पन्ना एकादशी (26 नवंबर): इस दिन भक्तगण भगवान विष्णु की आराधना करते हैं और उपवास रखते हैं। यह व्रत आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

कार्तिक मास का धार्मिक महत्व

कार्तिक मास को हिंदू पंचांग में सबसे पवित्र महीनों में से एक माना गया है। इस दौरान, भक्तगण सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, दीपदान करते हैं और तुलसी की पूजा करते हैं। कार्तिक मास के सोमवारों का विशेष महत्व है, जिसमें भक्त भगवान शिव की आराधना करते हैं।

कार्तिक माह में विशेष पूजा और व्रत

सोमवार व्रत

कार्तिक मास के सोमवारों को भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है। भक्त उपवास रखते हैं और भगवान शिव के मंदिरों में जाकर पूजा करते हैं। इस व्रत से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।

तुलसी विवाह

तुलसी विवाह का आयोजन कार्तिक माह में प्रभोधिनी एकादशी से आरंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इसे भगवान विष्णु और तुलसी माता के पवित्र मिलन का प्रतीक माना गया है। इस आयोजन में परिवार के सभी सदस्य मिलकर तुलसी के पौधे का विवाह भगवान विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम के साथ करते हैं। इससे घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।

क्षेत्रीय परंपराएं और आयोजन

भारत के विभिन्न राज्यों में नवंबर के हिंदू पंचांग के अनुसार त्यौहार मनाए जाते हैं, जो क्षेत्रीय विविधताओं के कारण भिन्न होते हैं। कुछ प्रमुख क्षेत्रीय उत्सव निम्नलिखित हैं:

  • गुजरात: यहाँ अन्नकूट और देव दीपावली का भव्य आयोजन होता है। भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा और अन्नकूट प्रसाद का वितरण किया जाता है।
  • बिहार और उत्तर प्रदेश: इन राज्यों में छठ पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें भक्त गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों के किनारे सामूहिक रूप से पूजा करते हैं।
  • राजस्थान और उत्तर प्रदेश: यहाँ कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पुष्कर मेले का आयोजन होता है, जो एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।

विशेष तिथियों के लिए पूजा और अनुष्ठान

कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष पूजा

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भक्त विभिन्न पवित्र कर्मों और पूजा-अर्चना का आयोजन करते हैं। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, दान-पुण्य, उपवास और पवित्र ग्रंथों का पाठ विशेष महत्व रखता है। यह दिन भगवान विष्णु और शिव की आराधना का प्रमुख दिन माना गया है।

  1. गंगा स्नान: भक्त गंगा या किसी भी पवित्र नदी में स्नान करते हैं, जिससे जीवन के सभी पापों का क्षय होता है।
  2. दीपदान: घर के चारों ओर दीये जलाए जाते हैं, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
  3. व्रत और दान: इस दिन उपवास रखकर दान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
  4. ग्रंथ पाठ: भगवान शिव और विष्णु के स्तोत्रों का पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

भाई दूज के अनुष्ठान

भाई दूज का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र संबंध को दर्शाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक करती हैं और उनके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करती हैं।

  1. तिलक: बहनें अपने भाइयों को तिलक करती हैं, जिससे भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना की जाती है।
  2. उपहारों का आदान-प्रदान: भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं, जो उनके प्रति प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक है।
  3. पारंपरिक भोज: भाई दूज के अवसर पर विशेष भोजन बनाकर परिवार के साथ आनंद मनाया जाता है।

नवंबर 2024 के प्रमुख मुहूर्त

नवंबर में विभिन्न त्यौहारों और व्रतों के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:

  • गोवर्धन पूजा और अन्नकूट: 1 नवंबर, प्रातः से मध्याह्न के बीच
  • भाई दूज तिलक मुहूर्त: 3 नवंबर, प्रातः 11:45 से दोपहर 1:30 तक
  • प्रभोधिनी एकादशी: 12 नवंबर, सुबह और शाम की पूजा
  • छठ पूजा अर्घ्य: 10 नवंबर, सूर्योदय का समय
  • कार्तिक पूर्णिमा: 15 नवंबर, प्रातः गंगा स्नान और सायं दीपदान के लिए शुभ समय
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धनतेरस कब है?

धनतेरस 2024 में 28 अक्टूबर मंगलवार को मनाया जाएगा। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली से दो दिन पहले आता है और इसे विशेष तौर पर माँ लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा के लिए मनाया जाता है। इस दिन को धन और आरोग्य का प्रतीक माना जाता है, और मान्यता है कि इस दिन कुछ खास वस्तुएं खरीदने से घर में समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।

धनतेरस पर क्या खरीदें ?

धनतेरस के दिन कुछ खास वस्तुएं खरीदने की परंपरा है जो समृद्धि और खुशहाली लाने में सहायक मानी जाती हैं:

  1. सोना या चांदी:
    • इस दिन सोने या चांदी के गहने खरीदने का विशेष महत्व है। यह समृद्धि और धन का प्रतीक माने जाते हैं और माँ लक्ष्मी की कृपा से घर में आर्थिक स्थिरता बनी रहती है।
  2. बर्तन:
    • धनतेरस पर धातु के बर्तन खरीदने की परंपरा है, खासकर स्टील, पीतल, और चांदी के बर्तन। इस दिन नए बर्तन घर में लाना शुभ माना जाता है, और इससे स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना पूरी होती है।
  3. धन्वंतरि पूजा के लिए आवश्यक सामग्री:
    • धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा का भी विशेष महत्व है। इस दिन पूजा के लिए तुलसी, चंदन, और केसर जैसे विशेष सामग्री भी खरीदी जाती है, जो घर के वातावरण को पवित्र बनाती है और आरोग्य का आशीर्वाद लाती है।
  4. झाडू:
    • झाडू विशेष रूप से उन घरों में किया जाता है जहां धन की कमी रहती है। झाडू खरीदना पुराने कर्जों को खत्म करने और समृद्धि लाने का प्रतीक है।
  5. दीये और पूजनसामग्री:
    • धनतेरस पर मिट्टी के दीये, कुमकुम, हल्दी, और अन्य पूजन सामग्री खरीदने से घर में ऊर्जा का संचार होता है और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

धनतेरस पर क्या न खरीदें ?

अगर आप अपने घर में समृद्धि चाहते हैं, तो किन चीजों से दूर रहना चाहिए,आइए जानते हैं

  • काले रंग की वस्तुएं: काले रंग की चीज़ों से दूर रहें। काले रंग को दुर्भाग्य का प्रतीक माना गया है। इसे खरीदने से बचें
  • नुकीली चीज़ें: चाकू, कैंची जैसे धारदार चीजें खरीदने से भी परहेज करें। इनसे अशुभ प्रभाव हो सकता है।
  • उपहार दें: धनतेरस पर उपहार न दें। अगर देना जरूरी है तो एक दिन पहले ही दें। धनतेरस के दिन उधार देना या पैसा चुकाना अशुभ माना जाता है। इसे टालें
  • कांच: कांच का सामान भी धनतेरस पर न खरीदें। ऐसा माना जाता है कि ये घर में नकारात्मकता ला सकते हैं।
  • प्लास्टिक: ध्यान रहे, प्लास्टिक और टूटी-फूटी चीजें भी न खरीदें।

धनतेरस पर झाड़ू खरीदना शुभ क्यों माना जाता है?

धनतेरस पर झाडू खरीदने की परंपरा को समृद्धि और बुरी ऊर्जा हटाने से जोड़ा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस पर झाडू खरीदना आर्थिक बाधाओं को दूर करता है और घर में लक्ष्मी का वास बनाए रखता है। इसका कारण यह माना जाता है कि झाडू नकारात्मक शक्तियों को बाहर निकालने का प्रतीक है, जो घर में सकारात्मक ऊर्जा लाती है।

धार्मिक दृष्टिकोण से, झाडू को लक्ष्मी जी का रूप माना गया है और इसे खरीदने से घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है। साथ ही, यह भी माना जाता है कि पुराने झाड़ू को बदलकर नए झाडू से घर की सफाई करने से परिवार पर किसी भी तरह के ऋण और आर्थिक परेशानियों का असर कम होता है। इस दिन झाडू खरीदने का एक अन्य पहलू यह भी है कि यह पूरे साल के लिए आर्थिक स्थिरता का प्रतीक है, इसलिए इस परंपरा को श्रद्धा और विश्वास से निभाया जाता है।

इसलिए धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने को शुभ माना जाता है।

इस धनतेरस पर सोच-समझकर खरीदारी करें और लक्ष्मी माँ की कृपा पाएं |

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